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हे ईश्वर क्या तुम हो?
कहाँ हो? कैसे हो?
जैसा लोग सोचते हैं,
बिलकुल नहीं वैसे हो।
फिर क्यूँ कहा मुरलीधर
कि जब जब धर्म की हानी होती हैं,
मैं अवतार लेता हूँ।
धर्मीयों का उद्धार कर
दुष्टों को दंड देता हूँ।
कितनी हानी और चाहिए कृष्ण?
क्यूँ फिर महाभारत नहीं रचाते?
क्यूँ फिर असहाय अर्जुनों को,
गीता नही सुनाते?
क्यूँ जरासंध अनगिनत रूपों मे जिंदा है?
क्यूँ लाखों द्रोपदीया आज शर्मिंदा हैं?
क्यूँ आज भी ध्रतराष्ट्र मौन है?
बोलो——-इनका रखवाला कौन है?
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क्या केवल तुम मुरली ही बजाओगे?
क्या कवल माखन ही चुराओगे?
क्या केवल गाय ही चराओगे?
या फिर,
कालिंदी मे कूद के,
जहरीले नाग को
मर्दन कर नथाओगे?
फिर से शिशुपालों पर,
सुदर्शन चलाओगे ?
………
हे ईश्वर क्या तुम हो?
कहाँ हो? कैसे हो?
जैसा लोग सोचते हैं,
बिलकुल नहीं वैसे हो।
(केदार नाथ की त्रासदी और उस आपदा मैं प्रभावित लोगों के साथ हो रहे अमानवीय अत्याचारों से व्यथित होकर केदार से ही एक सवाल)
Copyright@Himanshu Nirbhay
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