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अंतर्नाद

kaduvi-batain
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भ्रम के नवीन धरातल मे,
स्वयं को खूब सजाता हूँ।
नित नए नए विचारों से,
स्वप्नों का कोष बढ़ाता हूँ।

शायद ये साकार होंगे कभी,
छोड़ी नहीं है ये आस अभी,
अंतर्द्वंद मे निर्णायक बन,
निर्णय ना कुछ कर पाता हूँ।

भ्रम के नवीन……………….

धूप के साथ चलूँ कैसे,
जब साया भी साथ नहीं मेरे,
इस बेगानों की दुनिया मे,
अब अपनों से मुक्ति पाता हूँ।

भ्रम के नवीन……………….

चिर योवन सा जीवन मेरा,
हर एक कदम आगे मुझसे,
ये प्रतिपल आगे ही बढ़ता,
मैं फिर भी कभी थक जाता हूँ।

भ्रम के नवीन……………….

हूँ असफल पर बेकार नहीं,
हर हार भी मेरी हार नहीं,
इन हारों को स्वीकार कर,
विजय को पास बुलाता हूँ।

21-JAN-1999
copyright@Himanshu Nirbhay

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