Menu
blogid : 12311 postid : 55

बूड़ी खाल

kaduvi-batain
kaduvi-batain
  • 39 Posts
  • 119 Comments

==========
रचना काल- ४ नवम्बर १९९७
===============
सर्द जाड़ों में वो बूड़ी खाल,
एक जलन की चाह करती है|
रात भर ठिठुरती है, सिकुडती है—दोपहर की धूप तक|
फिर से कुछ फैलती है,
अपना कद बडाती हुयी|
फिर से सिकुड़ने लगती है–सर्द खून के साथ|
न जाने कब से, कितने जाड़ों मे,
वो सिकुड़ी है…..फ़ैली है कुछ देर के लिए,
अपने भाग्य को कोसती हुयी|
तपती दोपहर के इंतज़ार में,
फिर से सिकुड़ने लगती है—-एक तपिश के लिए|

copyright@Himanshu Nirbhay

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply