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यूँ ही ….

kaduvi-batain
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रचना काल- १३ अप्रैल, २०१३

सीधे खड़े पेड़ों को काटकर रास्ता बनाया है|
सरल होने का यूँ उन्होंने क़र्ज़ चुकाया है|

अमीर खरीद लेता है जुल्मी से ज़ुल्म का हुनर|
तूफानों ने अक्सर गरीबों पर ही सितम ढाया है|

वो जिन्हें हम अपना मसीहा कहते रहे उम्र भर|
मुफलिसी मैं उन्ही गिरगिटों ने हमे आइना दिखाया है|

अब सुपुर्दे खाक होने पर न जिन्दा होंगे ख्वाब|
हकीकत के सूरज हमे फिर नीद से जगाया है|

Copyright@Himanshu Nirbhay

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