kaduvi-batain
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रचना काल–११ जुलाई १९९९
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फर्श पर गिरती बारिश की बूँदें,
इधर उधर भागती, नाचती
कभी बनती तो कभी बिगडती,
मोतियों जैसी
दिल ने चाहा, मुट्ठी मैं भर लूं,
सहेजकर रख लूँ..कुछ पल के लिए ही सही,
किन्तु एक पल ही तो उनकी आयु है,
और म्रत्यु से पहले ही उन्हें……….
नहीं..नाचने दो फर्श पे उन्हें,
उन्मुक्त भाव से,
बिखरने दो इधर उधर,
आकार खो कर आकार पाने दो,
फैलने दो अंतिम बिंदु तक,
सत्य मैं हस्तक्षेप ठीक नहीं,
सत्य अटल है म्रत्यु की तरह और शाश्वत भी,
ठीक वैसी ही हैं–,
ये बाल सुलभ
फर्श पर गिरती बारिश की बूँदें|
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