kaduvi-batain
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रचना काल–६ सितम्बर २०१२
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दूर कहीं वो बस्ती है|
मानवता जहाँ हंसती है|
ये वो गाँव नहीं वो शहर नहीं,
सपनीली इच्छित डगर नहीं,
चहके किलकारी स्वच्छंद जहाँ,
मंदिर सा पावन वो घर नहीं,
पर क्या है ये जगह दोस्तों,
जहाँ बचपन को जवानी तरसती है|
दूर कहीं वो बस्ती है|……….
शब्दों पे विठा हुआ पहरा,
रजनी का जाल घना गहरा,
तम ही तम है अंतर्मन में,
हर मानव बना हुआ बहरा,
वो भोर कभी तो आयेगी
जिसमें सुगंध महकती है|
दूर कहीं वो बस्ती है|…….
हर प्रश्न क्यूँ अनुत्तरित,
हर पुष्प क्यूँ अपल्ल्वित,
हे वृक्ष, लता बतला दो ज़रा,
क्यूँ हो तुम भी अनुसूचित,
पर आएगा मेघ घुमड़, घुमड़,
चातक की आँख तरसती है|
दूर कहीं वो बस्ती है|
मानवता जहाँ हंसती है|
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