kaduvi-batain
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रचना काल–२७ जनवरी २००३
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अब खुलें मौन के द्वार
हो रहा हा-हा कार,
चहुँ और चीत्कार,
उजड़ गयीं माँगें,
लुट गया श्रृंगार,
मन का मीत रूठ गया,
आँचल का अमृत सूख गया,
क्यूँ है विश्व मौन?
तपते मन, उघडे तन,
नेह को पिघलने दो,
मेह को बरसने दो,
हो गया निर्णय —-अब मौन द्वार खुलने दो,
अब मौन द्वार खुलने दो|
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